Friday, June 11, 2010

सैनिक

मैंने देखा सैनिक तैनात पहाड़ों पर
चट्टानों से बातें करता
दोस्त बन चुकी थी हवा
और दुश्मन मौसम उसका
लड़ता था वो मानो स्वयं से
बंदूक तो बस दिखावा था।

मैंने देखा सैनिक तैनात मैदानों पर
साहब की चौकीदारी करता था
खाना लाना, बच्चों को घुमाना
खातिर मैडम की भी करता था
थी सच्ची भक्ति उसमें सेवा की
फिर भी नौकर लगता था।

मैंने देखा सैनिक तैनात बंकर में
धूल फांका करता था
छावनी हो या बॉर्डर हो
आगंतुक हो या दुश्मन हो
इंतजार करता रहता था।

मैंने देखा वो भी सैनिक
जो ट््रेन में छेड़खानी करता था
अभद्र, अश्लील हरकत उसकी
मारपीट तक देखो करता था
विरोध किया गर तुमने तो
फेंकने से भी नहीं हिचकता था

मैंने देखा ऐसा सैनिक
जो रात सिसकियां भरता था
बीवी, बच्चे घर से दूर
तनहाई में फोटो देखा करता था
कमजोर दिल उसका भी
भीग जाती थी आंख उसकी भी
जब वो दिल से मां कहता था।

मैने देखा लड़ता सैनिक
जो जांबाजी से भिड़ता था
चित कर दे हौसले दुश्मन के
जब वो युदृध करता था
आर-पार का मूड बनाकर
दुश्मन पर टूट पड़ता था।

मैंने देखा वो भी सैनिक
जो शहीद कहलाता था
टपकता था पानी छत से और आंसू आंख से
ये उसके घर का मंजर था
कुछ नहीं बचा सब खो गया
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया।।

Saturday, June 5, 2010

हिंसा, हत्या और मरहम की राजनीति

फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के रिलीज के समय महानायक अमिताभ बच्चन की कही बात याद आती है। वे पहले शख्स थे जिन्होंने कहा था कि फिल्म में देश की गलत तस्वीर पेश की गई। यही कुछ प्रकाश झा की राजनीति में दिखता है। इसमें भी देश की राजनीति की गलत तस्वीर पेश की है। सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जानेे वाले भारत देश में कई विभिन्नताएं हैं मगर जो राजनीति का चेहरा प्रकाश झा ने दिखाया है। वह गले नहीं उतरता। फिल्म को मसाला लगाने में वो यह भी भूल गए कि इसका असर समाज के पहलू को भी उजागर करता है मतलब इससे गलत संदेश जाता है। सबको खुश करने के चक्कर में कोई खुश नहीं होता वाली कहावत यहां भी घटित हो गई। यह फिल्म न तो राजनीति पर बन सकी और न ही किसी विशेष घराने के उपर। यह सिर्फ राजनीति और घटिया राजनीति पर ही घूमती रही। जैसा कि प्रकाश झा दिखाना चाहते थे। अपहरण, गंगाजल जैसी सफल फिल्मों की थीम उन्होंने राजनीति में इस्तेमाल कर दी। प्यार और इमोशन को तवज्जो नहीं दिया गया और नायिका की नायक के बड़े भाई से शादी करा दी गई। नायिका का पिता भी फायदा देख रहा था। भई, ये तो पूरी तरह से गंदी राजनीति की तस्वीर पेश की है। पता नहीं, ऐसा उन्होंने कहां देख लिया। रिश्ते हमारे भारत की पहचान हैं। आदर, सत्कार यहां का मान है। हो सकता है प्रकाश झा ने ऐसा देखा हो या महसूस किया हो, लेकिन क्या किसी एक या दो के भ्रष्ट होने से पूरी राजनीति का चेहरा पढ़ने की वो हिम्मत रखते हैं।

फिल्में परिवर्तन का एक बड़ा माध्यम हैं। इसका समाज में बड़ा योगदान है। भारत के लोग तो खासकर के बॉलीवुड के दीवाने हैं। असल में, बॉडीवुड से आम आदमी थियेटर के माध्यम से जुड़ता है। इससे सीखता भी है। क्यों, थ्री ईडियट हमें तरक्की, कामयाबी और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करती। तारे जमीं पर हमें बच्चों की भावनाएं समझाने के लिए नहीं उकसाती। लगे रहो मुन्नाभाई क्या हमें गांधीगीरी नही सिखाती। हल्ला बोल क्या बदलाव का सूचक नहीं थी। या ऐसी ही कितनी फिल्में हैं जो हमें आगे बढ़ने की शिक्षा देती हैं। फिर हम राजनीति जैसी फिल्मों को क्यों स्वीकार करें। जो कि भारत की लोकतां़ित्रक प्रणाली को चुनौती देती दिख रही है। हिंसा, हत्या और मरहम की राजनीति को हम क्यों स्वीकार करें? यह मात्र कुछ अराजकतत्वों के राजनीति में आने मात्र से हुआ है। फिर हम पूरी राजनीति को क्यों दूषित मान लें?

प्रकाश झा हिंसा और हत्या स्पेशलिस्ट होते जा रहे हैं। इसीलिए इसे दिखाने के चक्कर में कहानी से ही भटक गए हैं। इनकी फिल्म न ही हत्या स्पेशल विशेषांक रहा; न ही परिवार विशेष और न ही शिक्षाप्रद। असल में वो गागर में सागर भरना चाहते थे, लेकिन उनकी गागर फूट गईं। फिल्म आने के पहले माना जा रहा था कि यह सोनिया गांधी के जीवन पर बनी होगी। हकीकत में यह फिल्म सोनिया गांधी के व्यक्तित्व को छू तक नहीं पा रही है। कटरीना कैफ को सोनिया गांधी जैसा गैटअप पहनाने से ही यह सोनिया गांधी आधारित फिल्म नहीं हो जाती। ये भी प्रकाश झा का पब्लिसिटी स्टंट रहा, जिससे लोगों को वे जोड़ सकें। असल में, राजनीति यह है जो इन्होंने प्रचार के लिए इस्तेमाल की।

यहीं कहानी खत्म नहीं हो जाती है। फिल्म का क्लाइमेक्स तो लाजवाब निकला। सीधे महाभारत काल की याद दिया दी। जब इन्होंने दिल खोलकर हत्या के सभी शॉट दिखा दिए और दिमाग में कुछ नहीं सूझा तो महाभारत काल में चले गए। नायक की मां को कुनती बना दिया। उन्होंने भी अजय देवगन को ज्येष्ठ पुत्र संबोधित किया। अजय देवगन को कर्ण, रणबीर कपूर को अर्जुन, नाना पाटेकर को कृष्ण बना दिया। आखिरी में बढ़िया महाभारत दिखाई। नाना उर्फ कृष्ण ने अर्जुन उर्फ रणबीर को उपदेश दिया और मॉडर्न अर्जुन ने भी धनुष की जगह पिस्टल से कर्ण उर्फ अजय देवगन का वध कर दिया। इससे पहले कुनती कर्ण के पास गई थी उसे अपनाने के लिए, लेकिन वहां भी राजनीति की झलक दिख गई। कर्ण अपने दोस्त दुर्योधन मतबल मनोज वाजपेयी के पास चला गया। वाह रही दोस्ती। प्रकाश झा ने राजनीति के नाम पर कम्पलीट डामा पैकेज दिया है पर, दर्शक अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि यह राजनीति गले नहीं उतरती। राजनीति में आज भी बुरे लोगों को उंगली पर गिना जा सकता है। ऐसे गिने-चुने लोग या सोच को केंद्रित कर पूरी राजनीति का चेहरा नहीं बिगाड़ना चाहिए। यह देश राजनीति के बदौलत ही चल रहा है। इसमें अच्छे लोगों की कमी नहीं है। यदि पॉजिटिव सोच के साथ देश निर्वाण को केंद्रित कर फिल्म बनाई जाए तो पूरा देश थियेटर की तरफ मुड़ जाएगा पर इसमें राजनीति मत कीजिएगा।

Thursday, June 3, 2010

यह कैसी व्यथा

औरत दुखी होती जब
कहते लोग उसे बेऔलाद
नहीं आंगन में खेलती
कोई कली
देखूं जब सांझ
बेचैनी, तड़प दिल में
आंख में अश्रुधारा
गर बेटी ही होती तो
होता घर में उजियारा।

मत खरीदो छोटी पायल
ले आओ एक कड़ा
बेटा ही होगा
मेरी जान
सुन लो ये बात जरा
बेटा पाने की हसरत
दिल में पलने लगी
आषाढ़ वसंत सावन
की ऋतु ढलने लगी
नीरस हुआ जीवन
बेबस छाई जवानी
किसकी लगी नजर
नहीं आता कुछ समझ
टूटने लगी अब हिम्मत
जो थी फौलाद
नहीं आई आंगन में
अभी तक कोई औलाद।

सुनती थी लोगों के ताने वो
जीने के ढूंढती थी
रोज बहाने वो
अश्रु उसके तो बह जाते थे
लेकिन मेरे जम जाते थे
किया होगा हमने किसी
बेटी का तिरस्कार
जो जरूर रही होगी
किसी देवी का अवतार।

बेटा-बेटी में भेद
सोच ही पुरानी है
बेटा यदि मान है गुरूर है
तो बेटी आंख का पानी है
अब तो जाएंगे दर
देवी के
करेंगे चरणों में
फरियाद
दे दो मुझे बेटी
नहीं हसरत बेटे की।

ठुकरा के तुम्हारा आशीष
कैसा तड़प रहा हूं
जज्बाती हो रहा हूं
देखो
कैसा बिलख रहा हूं
गर मैंने किया गुनाह है
तो सजा का मैं हकदार हूं
मुझको तो दुनिया कुछ कहती नहीं
फिर उसे क्यों मिलती दुत्कार है
गुनहगार तो मैं हूं
पुरूष प्रधान समाज का आधार मैं हूं
फिर भी वो समाज में पाती तिरस्कार है
गर मैंने किया गुनाह है
तो उसे क्यों मिलती दुत्कार है।

माता, अब नहीं सहा जाता
देखकर उसके बेबसी के आंसू
अब नहीं जिया जाता
बुला लो अपने पास
यही है अब मेरी आस
या दिखा दो मुझे जीने का आधार
आंगन में खेले बेटी
ऐसा दे दो वरदान
ऐसा दे दो वरदान
ऐसा दे दो वरदान।।

-ज्ञानेन्द्र