tag:blogger.com,1999:blog-87316867946844392292024-03-13T20:55:16.757-07:00किराये का मकानकई लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आशियाने नहीं हैं। है तो सिर्फ किराये का मकान.....................Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-60636263116122411622011-02-13T05:25:00.001-08:002011-02-13T05:25:38.797-08:00दिल का मदनोत्सव वसंतहजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - वसंत आता नहीं लाया जाता है। कोई भी इसे अपने उपर ला सकता है। इन पंक्तियों को शहर के युवा दिलों ने बखूबी साबित किया। जवानी के मदनोत्सव में सराबोर युवा दिल सड़क पर आते-जाते पीले फूल ’पीले वस्त्रों में लड़कियां’ देख रहे थे। तभी उन्हें वसंत को मनाने और ओढ़ने का ख्याल आया। क्या वसंत समुद्र जैसी विशाल लहरों के हिलोरों को ही कहते हैं। यदि हां तो मान लिया जाए कि यही युवा दिल का मदनोत्सव वसंत है। सावन के जिस अंधे को हर जगह हरा-हरा दिखता है वही युवा मन हर जगह पीला-पीला देखने के लिए क्यों आतुर नजर आता है? सेक्स या कामुकता के लिए हमेशा से ही चटकीला लाल रंग प्रभाव में रहा है। चाहे वह कंडोम में स्ट्ावेरी का प्रचार हो या फिर सुहाग के जोड़े में सजी दुल्हन। लड़की लाल दुपट्टे वाली गाना हो या लाल छड़ी मैदान खड़ी का सदाबहार गीत। लाल रंग ने ही हर जगह बाजी मारी है पर यह मदनोत्सव का कैसा त्योहार है जो पीला होने के बावजूद लाल पर भारी पड़ रहा है। युवा मन की एक और कैटेगरी है जो बीयर के गिलास में पीला रंग ढूंढता है और उसी को ओढ़ता हुआ मदहोश हो मदनोत्सव में मस्त रहता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी की लाइनों में सचमुच बहुत ताकत है। वसंत आता नहीं लाया जाता है। <br />
<br />
-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-15911737252800059462011-01-02T09:29:00.003-08:002011-01-02T09:58:33.366-08:00यात्रा वृतांत-- दाउजी महाराज<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3KXTsWlI/AAAAAAAAABg/dGbwpi_hqVk/s1600/101_8309.JPG" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="242" width="320" src="http://4.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3KXTsWlI/AAAAAAAAABg/dGbwpi_hqVk/s320/101_8309.JPG" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3KqLg-_I/AAAAAAAAABw/Ri27jDnL8y4/s1600/101_8301.JPG" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="242" width="320" src="http://1.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3KqLg-_I/AAAAAAAAABw/Ri27jDnL8y4/s320/101_8301.JPG" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3K1oCC1I/AAAAAAAAAB4/Pbwc8LRYCgA/s1600/101_8328.JPG" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="242" width="320" src="http://4.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3K1oCC1I/AAAAAAAAAB4/Pbwc8LRYCgA/s320/101_8328.JPG" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3Krx65NI/AAAAAAAAABo/rTZVQyUIMRU/s1600/101_8295.JPG" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="242" width="320" src="http://3.bp.blogspot.com/_lUD_LyCCziM/TSC3Krx65NI/AAAAAAAAABo/rTZVQyUIMRU/s320/101_8295.JPG" /></a></div><br />
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पतली लंबी सड़क। जो सीधी जा रही है। रेतीला मैदान। शांति बयान कर रहा है। यमुना का किनारा और नाव वाले की आवाज। जल्दी बैठो...जल्दी चलो का शोर। लकड़ी की नाव और रस्से की पतवार। कुछ ऐसी ही मनमोहक यात्रा थी बलदेव के दाउ जी महाराज की। अचानक प्रोग्राम तय हो गया। शनिवार सुबह नौ बजे निकलने का। साढ़े आठ बजे सोकर ही उठे। मौसम साफ था। हवा चल रही थी। झट से तैयार हो गए और छोड़ दिया घर। सिकंदरा पर चार मित्र इंतजार कर रहे थे। दीक्षांत, अनुज, देवेन्द्र और मिंटू। संजय सिंह साथ में ही थे। सिकंदरा पर गरम-गरम बेड़ही देखकर खाली पेट से रहा नहीं गया। दो-दो बेड़ही खा ली और कार छोड़ मोटरसाइकिल पर सवार हो गए। देवेन्द्र सिंह जिन्हें हम मास्साब और ठेनुआ कहते हैं। उनकी बाइक की स्टेयरिंग मैंने थाम ली और वो भी मेरे पीछे जकड़ कर बैठ गए। यहां से शुरू हुई हमारी यात्रा दाउजी महाराज के दर्शनों के लिए। <br />
दाउजी महाराज के लिए सफर मथुरा से बलदेव के लिए है, लेकिन हमारी योजना कुछ और थी। हम नदी और नाव का मजा भी लेना चाहते थे। इसलिए मेन सड़क को छोड़कर चल दिए कैलाश मंदिर की ओर। ये वो शार्टकट रास्ता है जहां से बलदेव महज 22-23 किलोमीटर है। हम सभी यमुना के किनारे पहुंच गए। नाववाले का इंतजार कर रहे थे। नाव के किनारे लगने पर डगमगाते कदमों से चढ़ा दी बाइक नाव पर। रेतीली मिट्टी में बाइक लहरा रही थी, लेकिन जज्बा डिगने नहीं दे रहा था। पहला अनुभव भी था इसलिए मजा आ रहा था। पर्यटक के रूप में हम छह लोग ही थे बाकी रोजवाले थे, जिनकी नदी पार करना रोज की आदत थी। हमारी हरकतों को देखते हुए नाववाले ने हमसे ज्यादा पैसे झटक लिए, लेकिन बहस किसी ने नहीं की क्योंकि सब मगन थे नाव में फोटो खिंचवाने के लिए। हर फोटो पर एक कमेंट। खुद ही दे रहे थे। एंगल खुद ही बना रहे थे और फोटो स्पेशलिस्ट भी खुद ही बन गए थे। ये और बात है कि डिजिटल कैमरा नौसिखियों के हाथ में था इसीलिए हर फोटो में तारीख 2003 की चल रही थी। दोस्त अनुज के कैमरे में बार-बार वो पल कैद हो रहे थे जो फिर पता नहीं कब आएं। नाव दूसरे किनारे पर लगी तो और मजा आया। इस बार बाइक चढ़ाने के लिए संघर्ष कठिन था। नाव किनारे पर ऐसी जगह लगी जहां से मिट्टी के टीले जैसी उंची चढ़ाई थी। जैसे ही दो बाइक सवार गुजरे, टायरों ने मिट्टी को अंदर दबा दिया। अब बादवालों के लिए बाइक चढ़ाना मुसीबत जैसा हो गया था। हमने तो बाइक स्टार्ट की और पैदल ही चढ़ाई फिर सबने यही किया। आनन्द आ रहा था। अब गाड़ी खेतों के किनारे चल रही थी। रास्ता कोई जानता नहीं था सिवाय अनुज एक्सपर्ट के। वो आगे-आगे चला और हम पीछे-पीछे। पतले रास्तों, कच्ची सड़कों से होते-होते कितने गांव किनारे ही छूट गए। खेतों में बाईं ओर सरसों लहलहा रही थी तो दाईं ओर आलू की फसल लगी थी। सेहत, नेरा, बरौली अहीर होते हुए पहुंच गए बलदेव। रास्ते में विवादित हाईवे भी मिला जिसे हम यमुना एक्सप्रेस वे के नाम से जानते हैं। हम इसके उस अंडरपास से गुजरे तो महसूस करने लगे कि इसी के नीचे ही अलीगढ़ में किसानों ने सूबे की सरकार को हिलाया था और सरकारी गोलियां भी खाई थीं। <br />
सुना था मथुरा का हर गांव संपन्न है। कुछ ऐसा ही देखने को भी मिला। बलदेव कस्बे में पक्के मकान हैं। घरों में डीटीएच कनेक्शन लगे हैं। हालांकि सड़क खस्ताहाल है। वोल्टेज कम आता है। पावरकट की समस्या है, लेकिन फिर भी लोग आनन्द में रहते हैं। बलदेव पहुुंचते ही सड़क के दोनों ओर मिठाई, पकौड़ी की दुकानें ज्यादातर दिखीं। थोड़ा अंदर गए तो दाहिनी ओर मैदान में मेला लगा था। हम लोग अंदर नहीं गए, लेकिन कभी अखबार में जिस बलदेव मेले के बारे में पढ़ा था वो यही है। छोटे-बड़े झूले भी लगे थे, जिसमें लोग आनन्द ले रहे थे। एक नजर में पूरा मेला बाहर से ही देखने की हम लोगों ने कोशिश की, बाइक पर एक्सीलेटर को धीमा करने और ब्रेक पर पैरों को जोर देने की कोशिश नहीं की। पूछते हुए दाउजी महाराज के मंदिर पहुंच गए। इस समय, वाकई बड़ा सुकून मिल रहा था। जिन दाउजी महाराज के दर्शन के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं। जिनकी महिमा और माखन-मिसरी का प्रसाद पूरे विश्व में आलौकिक है उन दाउजी महाराज के चरणों में हम लोग खड़े थे और शीश नवा रहे थे। दाउजी महाराज के दर्शन कर अंदर से मन रोमांचित हो रहा था और आत्मा प्रसन्नचित हो रही थी। <br />
दाउजी के दर्शन के बाद हम लोग बंदी गांव के लिए निकल गए। हमारे आॅफिस के ही जगदीश ओझा का पैतृक घर है। ओझा जी से फोन पर रास्ता पूछते हुए महावन की ओर चल दिए। वो रास्ते में इंतजार कर रहे थे, लेकिन हम लोगों को रास्ते में लहलहाती सरसों ने रोक लिया। करीब 15 मिनट तक सभी ने पोज बनाए और तरह-तरह से फोटो खिंचाए। दीक्षांत का पिपीरी बजाकर शू-शू करने का एक्सक्लूसिव फोटो भी कैमरे में कैद हो गया। ठहाके लगा ही रहे थे कि फिर ओझा जी का फोन आ गया। सभी फोटोशेसन छोड़कर आगे बढ़ गए। ओझा जी से मिले तो उन्होंने अपने और अपने भाइयों के खेत दिखाए। गेहूं बोया जा चुका था। आगे के कुछ खेतों में पानी भी लगाया जा रहा था। हवा मध्धम गति से बह रही थी। वहां से हमने बंदी गांव स्थित बंदीदेवी के दर्शन किए। बड़ा नाम सुना था बंदी देवी का। ये वही बंदी देवी हैं जिन्हें कंस ने कारागार में आठवां पुत्र जानकर मारने की चेष्टा की थी। देवी स्वरूप कन्या कृष्ण के पैदा होने की बात कंस को बता ओझल हो गई थीं। स्थानीय लोगों की यह कुलदेवी हैं। मान्यता है कि नई दुल्हन पहले इनका आशीर्वाद लेती है फिर गांव के घरों में जाती है। यहां आने से पहले एक गड़बड़ हुई। मेरी गाड़ी पानी में स्लिप की थी। मेरे उपर मास्साब गिरे। बाइक वहीं गिर गई। मेरी हथेली में खरोंच आई, लेकिन मास्साब के दोनों घुटनों में खिड़की बनाकर खून छलक आया। ओझाजी के घर में चाय की चुस्कियों के साथ थोड़ा आराम किया। मास्साब ने एंटी सेप्टिक क्रीम लगाई और फिर वापसी की ओर हम लोग बढ़ चले। एक बात बताना भूल गया। जैसा मौसम आगरा में छोड़ा था वैसा फिर हमें कहीं नहीं मिला। आगरा में भी नहीं। हम लोग ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते गए, पीछे से मौसम बिगड़ता ही जा रहा था। रूके दो बार और भीगे भी दो बार। मौसम खराब होता जा रहा था। सड़कें गीली हो चुकी थीं। हवा चल रही थी। गाड़ी की स्पीड भी कम हो गई थी। वापस उसी रास्ते होते हुए हम लोग नदी किनारे पहुंच गए। बारिश की वजह से रेतीली मिट्टी बैठ चुकी थी। दीक्षांत गाड़ी लेकर नाव में चढ़ गया और हम लोगों को ओवरलोड होने की वजह से नाववाले ने रोक दिया। वो और मिंटू नाव में बढ़ चले। देखते ही देखते नाव छोटी होती चली गई और उस पर सवार लोग भी। किनारे पहुंच कर नाव फिर चली। इन सब में आधे घंटे से ज्यादा बीत चुके थे। नाव फिर किनारे लगी। इस बार हम चढे़। इस बार न नाव छोटी हो रही थी और न ही हम लोग। नाव में हम लोग सवार थे। हमारी नजर में जितने थे उतने ही रहे। दूसरे किनारे लगते ही हमभी उतरे। बारिश इतनी हो चुकी थी कि उपर भी मिट्टी बुरी तरह चिकनी हो गई थी। गाड़ी स्लिप कर रही थी। जैसे-तैसे हमने पार किया और सड़क पर आते ही गाड़ी दबा दी सिकंदरा की ओर। यहां स्टैंड पर मेरी कार खड़ी थी। उस पर हम और संजय जी बैठे और बढ़ चले आगरा की ओर। <br />
<br />
दाउजी की इस यादगार यात्रा के लिए सभी मित्रांे को बधाई। <br />
<br />
-ज्ञानेन्द्र<br />
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ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-40226030452814289632010-11-16T09:22:00.001-08:002010-11-16T09:24:20.334-08:00बलि दिवस पर खासइसे इत्तेफाक ही कहंेगे कि बकरीद और देवोत्थान साथ हैं। देवता जब आंख खोलेंगे तो असंख्य बकरे अपनी अंतिम सांस छोड़ेंगे, कुर्बान होंगे क्योंकि कुर्बानी...कुर्बानी...कुर्बानी...अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी। अजब संयोग है इस बार चार पैर के बकरों के अलावा दो पैर के बकरे भी कटेंगे या हलाल होंगे, जो भी कह लें। ये दो पैर के बकरे कौन हैं साहब...अजी ये वो बकरे मतलब लड़के हैं जो सेहरा बांधेगे, घोड़ी चढें़गे और हंसते-हंसते कुर्बान होंगे। बकरीद में बकरे को सजाया जाता है। इन्हें भी सजाया जाएगा। बकरे को माला पहनाई जाती है, इन्हें भी पहनाई जाएगी। बकरे को खूब खिलाया जाता है, जनाब इन्हें भी खिलाया जाएगा। बकरे की कुर्बानी के समय लोग खुशी मनाते हैं, यहां भी धूम-धड़ाके से बारात निकाली जाएगी और खुशी मनाई जाएगी। बस फर्क इतना होगा कि बकरों को हमेशा के लिए सुला दिया जाएगा और इन्हें...... बताने की जरूरत नहीं। बेचारे बकरे तो हलाल हो जाएंगे। जन्नत की ओर रवाना हो जाएंगे, लेकिन दूल्हे शादी की सेज से नया जन्म पाएंगे। बकरे अपने-अपने कर्मों के हिसाब से नया जन्म पाते हैं, लेकिन यहां भी दूल्हे लाचार हो जाते हैं। बकरों को किसी भी योनि में जन्म मिले, वो बकरा तो नहीं बनेगा जबकि दूल्हा शादी के बाद चूहा बन जाता है जिस पर दुर्गाजी सवार रहती हैं। कुछ अपने को बाहर शेर भी कहते हैं मगर घर में बिल्ली बन जाते हैं वो भी भीगी। कुछ इस तरह शादी के बाद अलग-अलग योनियों में दूल्हा भटकता रहता है। बकरों को तो जन्नत नसीब भी हो जाती होगी मगर ये तो जन्नत के दरवाजे पर खड़े ही रह जाते हैं। खैर बकरा काटो चाहे दूल्हा। आज का जमाना खूब मजे लेने लगा है। बकरा काटोगे तो चाव से खाया जाएगा और दूल्हा काटोगे तो नाच-नाच कर खाया जाएगा। इन्ज्वाय दोनों में ही किया जाएगा। इसलिए बलि अब सस्ती हो गई है- <br />
बकरीद मुबारक......Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-7208648928450120992010-11-03T03:45:00.000-07:002010-11-03T03:45:36.974-07:00दीपावली विशेष:ःःःमदारी-बंदर का खेल<br />
<br />
डम... डम... डम... डम... डम... डम...<br />
<br />
मदारी: जमूरे<br />
<br />
जमूरा: हां, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: लोगों को हंसाएगा<br />
<br />
जमूरा: हंसाएगा, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: मनोरंजन करेगा<br />
<br />
जमूरा: करेगा, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: बता, धनतेरस के बाद कौन सा त्योहार आता है<br />
<br />
जमूरा: दीपावली, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: दीपावली में क्या होता है<br />
<br />
जमूरा: खुशी मनाते हैं, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: खुशी किसके साथ मनाते हैं<br />
<br />
जमूरा: घरवालों के साथ, उस्ताद<br />
<br />
डम... डम... डम... डम... डम...<br />
<br />
मदारी: जमूरे, तो इस बार घर जाएगा<br />
<br />
जमूरा: नहीं, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: क्यों, खुशी नहीं मनाएगा<br />
<br />
जमूरा: नहीं, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: घर नहीं जाएगा<br />
<br />
जमूरा: नहीं उस्ताद<br />
<br />
मदारी: उदास है क्या<br />
<br />
जमूरा: हां, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: क्यों जमूरे<br />
<br />
जमूरा: छुट्टी नहीं मिली, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: छुट्टी क्यों नहीं मिली<br />
<br />
जमूरा: सेटिंग नहीं थी, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: नौकरी करता था, सेटिंग क्यों नहीं बन पाई<br />
<br />
जमूरा: काम करता था, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: काम तो सब करते थे<br />
<br />
जमूरा: मैं अडवांस नहीं था, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: जमूरे...उदास है<br />
<br />
जमूरा: हां, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: मेरे साथ दीवाली मनाएगा<br />
<br />
जमूरा: नहीं, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: फिर क्या करेगा<br />
<br />
जमूरा: अपने को कोसूंगा, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: क्यों कोसेगा<br />
<br />
जमूरा: नौकरी, न करी, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: क्यों न करी<br />
<br />
जमूरा: छुट्टी कैंसल हो गई, घर नहीं जा सकता, <br />
अब आम आदमी अपना धार्मिक पर्व नहीं मना सकता <br />
<br />
मदारी: तो क्या मानंे, अंग्रेजों का शासन आ गया<br />
<br />
जमूरा: हां, उस्ताद<br />
<br />
मदारी: फिर आजादी कैसी... सोच में पड़ गया मदारी<br />
<br />
जमूरा: सोचो मत, उस्ताद <br />
<br />
ये रोने का समय है, देखो, आम आदमी आज भी खुशियों से कितनी दूर है। <br />
<br />
<br />
<br />
इस दीवाली न जाने कितने तनहाई में रहेंगे <br />
दुनिया तो जगमग होगी, दिल में अंधेरे रहेंगे <br />
होंगे दूर न जाने कितने परिवार से <br />
तकिया लेकर सुबकेंगे तो कई टल्ली भी रहेंगे।।<br />
<br />
<br />
दीपावली की सभी को शुभकामनाएं:ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-65355561806121863412010-09-28T08:44:00.001-07:002010-09-28T08:44:23.991-07:00अहसासएक रात<br />
चांदनी छाई<br />
ठंडी हवा सरसराई<br />
ख्वाब मेरे <br />
सजने लगे<br />
होंठ मेरे खिलने लगे<br />
सपनों में मैं खोने लगा<br />
कुछ मुझे होने लगा<br />
बदल रहा बार-बार करवट<br />
पड़ रही थी चादर में सिलवट<br />
मैं मदहोश होने लगा<br />
जिया मेरा खोने लगा<br />
ये कैसा अहसास होने लगा।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-12536818550561483902010-09-22T04:56:00.000-07:002010-09-22T04:56:21.236-07:00बहस भरा सफरसुबह के नौ बजे थे। तीन दोस्त दिल्ली-आगरा हाइवे पर चल रहे थे। वे नोएडा से आगरा आ रहे थे। रोहित, रौनित और अमजद। तीनों ही नोएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र हैं। तीनों पढ़ने में तेज थे और तीनों की बनती भी खूब है। रोहित आगरा का रहने वाला और साधारण परिवार का था। तीनों रौनित की कार में उसी के घर आ रहे थे। रौनित बड़े परिवार का इकलौता बेटा था जबकि अमजद नोएडा में किराये पर रहता था। वो रहने वाला अलीगढ़ का है। आगरा आते हुए तीनों बात कर रहे थे आयोध्या फैसले के बारे में। हमेशा एक राय रहने वाले इस बार एक राय नहीं थे। फिर भी बहस कर रहे थे। <br />
रौनित के पिता बडे वकील थे। दोनों में अक्सर सकारात्मक बातें होती थीं। अयोध्या फैसले को लेकर हलचल थी। इस पर भी चर्चा हुई। रौनित के पिता की दिनचर्या का यह हिस्सा था। वो खाली समय में समकक्ष वकीलों के साथ बैठते थे और सकारात्मक चर्चा करते थे। वही घर पर रौनित के साथ भी शेयर कर लेते थे। इस वजह से रौनित पिता के नजरिये को अपना नजरिया समझने लगा। उसके पिता कट्टर हिन्दू थे तो वह भी इस विषय पर कट्टर बात करने लगा जो अमजद और रोहित को बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी। बात करते हुए वह भूल गया कि उसके मित्र इस बहस का हिस्सा नहीं हैं।<br />
अमजद मन ही मन गुस्सा हो रहा था, लेकिन दोस्ती की लाज रख रहा था। वह इस बहस का हिस्सा नहीं बनना चाहता था, लेकिन वह रौनित की बातों से जुड़ता जा रहा था। अमजद की पृष्ठभूमि सामान्य जरूर थी पर उसके अब्बा भी कट्टर थे। अलीगढ़ छोड़ने के समय उन्होंने साफ कहा था, ’अपनी कौम वालों से ही दोस्ती रखना।’ पर उसे तो रौनित और रोहित का साथ ही पसंद था। तीनों का प्रोग्राम आगरा के बाद अमजद के घर अलीगढ़ जाने का था। अमजद घर में इन दोनों को ले तो जा रहा था, लेकिन मन ही मन रौनित की बातों से डर भी रहा था क्योंकि अमजद के पिता अयोध्या में बाबरी निर्माण के लिए एकराय थे। उसकी अब्बा से ज्यादा बात तो नहीं होती मगर बाबरी प्रकरण की बातों पर वह अब्बा के चेहरे पर क्रोध देखता था। <br />
अचानक अमजद ने रौनित से कहा, ’ये बातें कार तक ही ठीक हैं जब घर चलना तो कुछ मत बोलना।’<br />
रौनित, ’यार, तेरे अब्बा के साथ तो बहस करने में मजा आ जाएगा।’<br />
अमजद, ’तू वहां मंदिर बनाने जाएगा, क्या?’ थोड़ा गुस्से में...<br />
रौनित, ’जाना पड़ेगा तो बिल्कुल जाउंगा।’ <br />
अमजद, ’तो सुन ले, मैं भी मुसलमान का बेटा हूं, वहां तो मस्जिद ही बनेगी, तुम्हारे लोगों ने गिराई थी।’<br />
रोहित दोनों की बातों को काटते हुए....<br />
यार, ये तुम्हारे लोग, हमारे लोग बीच में कहां से आ गए, चेंज द टॉपिक। <br />
रौनित, ’नहीं बहस करने दे, मंदिर तो बनकर ही रहेगा।’<br />
अमजद के बोलने से पहले ही रोहित अचानक बोला, ’तू था उस समय और तू’... अमजद की ओर इशारा कर बोला।<br />
यार, हम लोग अपना टूर क्यों खराब कर रहे हैं। गहरी सांस लेते हुए रोहित बोला।<br />
मैं तो इससे इतना ही कह रहा था घर पर मुंह बंद रखना, अब्बा बहुत सख्त हैं। अमजद ने कहा।<br />
हां, तो तेरे अब्बा से भी बहस कर लेंगे। रौनित बोला।<br />
सेटअप यार, तुम लोग दूसरी बातें नहीं कर सकते हो क्या? रोहित बोला।<br />
दोनोें सांस भर कर बोलने ही वाले थे कि रोहित बोला, ’तू बता कितनी बार अयोध्या गया है और तू... अमजद की ओर देखकर बोला।’<br />
दोनों का जवाब न में था। <br />
हम इतने अच्छे दोस्त हैं फिर भी यहां हमारी सोच क्यों नहीं मिलती पता है...<br />
क्यों...दोनों ने ही कहा।<br />
क्योंकि हम अपने नजरिये से देखते ही नहीं हैं, रोहित बोला<br />
क्या मतलब, रौनित और अमजद एक साथ बोले,<br />
रोहित बोला, तुम्हारे पापा कट्टर हिन्दू और तुम्हारे भी कट्टर। तुम लोग सिर्फ उतना ही जानते हो, जितना उनसे सुनते हो और उसी आधार पर बहस कर रहे हो। <br />
तुम दोनों एक दूसरे के नजरिये से क्यों नहीं सोचते हो?<br />
थोड़ी देर के लिए तुम मुसलमान बन जाओ और तुम हिन्दू, फिर बताओ क्या सही है क्या गलत।<br />
रौनित ने अचानक गाड़ी रोक दी। वह कोसी पहुंच गए थे। किनारे एक होटल के बाहर एक औरत कूड़े से बचा खाना बटोर रही थी। रौनित की नजर उस पर पड़ी। <br />
रोहित और अमजद ने भी उसे देखा। <br />
खाना बीनने के बाद वह कुछ दूर बैठे अपने बच्चे को चुन-चुन कर उससे अच्छा खाना खिला रही थी। <br />
तीनों यह देख ही रहे थे कि रोहित बोला, ’ऐसा भी भारत है, देख रहे हो न।’ उससे पूछोगे तो वह कुछ नहीं जानती होगी कि मंदिर बनेगा या मस्जिद।<br />
मैं यह अक्सर देखता रहता हूं और महसूस भी करता हूं। तुम लोग बहस नहीं कर रहे हो, बस जीतना चाहते हो। तुम दोनों में कोई भी झुकना नहीं चाहता। तुम दोनों अपनी बातें कर ही नहीं रहे हो। तुम दोनों तो अपने-अपने पिता की बातों का हिस्सा बन रहे हो। जो सुना वही चिल्ला रहे हो। इसका नतीजा जानते हो क्या होगा? ये हमारा साथ में आखिरी सफर भी हो सकता है। <br />
क्या मतलब? रौनित और अमजद ने एक साथ कहा।<br />
हम अतीत के लिए अपने भविष्य को बिगाड़ रहे हैं्र। जो नहीं चाहते वह हो रहा है। यदि यूथ भी ऐसे कट्टरपंथी लोगों के पीछे-पीछे चलने लगेगा तो यह बहुत डरावना होगा। <br />
हम जैसे युवाओं को तो अपनी दिशा खुद तय करनी होगी। हां, अभी बहुत लड़ना होगा, लेकिन इस गरीबी से।<br />
उस औरत की तरफ इशारा कर रोहित बोला। <br />
दोनों का ही सिर शर्म से झुक गया...<br />
रौनित और अमजद के मुंह से एक साथ निकला ’सॉरी’<br />
कार का शीशा चढ़ाते हुए रौनित ने साउंड तेज किया और हंसते हुए चल दिए आगरा की ओर।।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-7986219219769681752010-09-01T10:51:00.001-07:002010-09-01T10:51:04.996-07:00मीठी बात......वो शाम को शमा जलाकर बैठे थे<br />
हम अंधेरे में तनहा रहते थे<br />
उनकी नजरों को था इंतजार हमारा <br />
और हम उनसे आंख चुराए रहते थे।<br />
<br />
ये सच नहीं कि हम उन्हें प्यार करते नहीं<br />
उनके बिना जीने की सोच हम सकते नहीं<br />
तड़प रहा है दिल मोहब्बत में दोनों का<br />
वो वहां रोते नहीं और हम यहां रोते नहीं।<br />
<br />
समंदर में लहरें आती हैं, मुड़ के चली जाती हैं<br />
आंखों में आंसू ठहर क्यों जाते हैं<br />
मिलन की चाहत में जल रही वो <br />
बिन जल मछली जैसे तड़प रही वो <br />
और यहां मैं भी बेकरार हूं<br />
हमारे पास क्यों नहीं आती है वो।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-1819288065770219872010-07-08T08:14:00.000-07:002010-08-02T04:10:18.687-07:00सुकूं कहां है ःःःःःःःपैगम्बराने अमन कहां जाके सो गए<br />
सारे जहां को आज सुकूं की तलाश है।।<br />
<br />
<br />
यह लाइनें देश के ताजा हालात पर सटीक बैठती हैं। सुकून की ही आज देश को सबसे ज्यादा जरूरत है। सुकून, लेकिन है कहां? क्या जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में सुकून है जहां शांति बहाली के लिए सेना पहरेदारी कर रही है? या पूर्वी भारत में सुकून है जहां नक्सलियों ने पुलिस चैकी उड़ा दी, थाने फूंक दिए, पटरियां काट दीं। ट्ेन संचालन ठप कर दिया और सरकार को बेबस कर दिया। देश के हर घर में क्या सुकून है जो बढ़ती महंगाई झेलने को मजबूर है। पहले तो दो-पांच रूपये ही बढ़ते थे मगर अब तो घरेलू गैस पर सीधे 35 रूपये ही बढ़ा दिए। क्या देश की राजनीति में सुकून है। जो महंगाई के मुद्दे पर जनता के लिए लड़ रहे हैं और प्रदर्शन व सड़क जाम कर उन्हें ही छल रहे हैं। क्या विपक्ष को सुकून है जो केंद्र को घेरने में जुटा है? क्या केंद्र सरकार को सुकून है जो महंगाई के लिए राज्य सरकारों पर आरोप मढ़ रही है? क्या राज्य सरकारों को सुकून है जो केंद्र पर त्योरियां चढ़ा रहे हैं? क्या महेन्द्र सिंह धौनी को सुकून है जो शादी के नाम पर मीडिया को नचा रहे हैं? क्या मीडिया को सुकून है जो धौनी के घर के बाहर फालतू रिपोर्टिंग कर पका रही है? क्या राहुल को सुकून है जो दलितों के घर खा रहे हैं? क्या मायावती को सुकून है जो घबरा रही हैं? क्या गडकरी को सुकून है जो भाजपा की शाखा लगा रहे हैं? क्या आडवाणी को सुकून है जो सुकून नहीं पा रहे हैं? भई आखिर सुकून है कहां?Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-75742458535850220052010-06-11T09:29:00.000-07:002010-06-11T09:32:27.191-07:00सैनिकमैंने देखा सैनिक तैनात पहाड़ों पर <br />
चट्टानों से बातें करता<br />
दोस्त बन चुकी थी हवा<br />
और दुश्मन मौसम उसका<br />
लड़ता था वो मानो स्वयं से<br />
बंदूक तो बस दिखावा था।<br />
<br />
मैंने देखा सैनिक तैनात मैदानों पर <br />
साहब की चौकीदारी करता था<br />
खाना लाना, बच्चों को घुमाना <br />
खातिर मैडम की भी करता था<br />
थी सच्ची भक्ति उसमें सेवा की<br />
फिर भी नौकर लगता था।<br />
<br />
मैंने देखा सैनिक तैनात बंकर में <br />
धूल फांका करता था<br />
छावनी हो या बॉर्डर हो<br />
आगंतुक हो या दुश्मन हो<br />
इंतजार करता रहता था।<br />
<br />
मैंने देखा वो भी सैनिक<br />
जो ट््रेन में छेड़खानी करता था<br />
अभद्र, अश्लील हरकत उसकी <br />
मारपीट तक देखो करता था<br />
विरोध किया गर तुमने तो <br />
फेंकने से भी नहीं हिचकता था<br />
<br />
मैंने देखा ऐसा सैनिक <br />
जो रात सिसकियां भरता था<br />
बीवी, बच्चे घर से दूर<br />
तनहाई में फोटो देखा करता था<br />
कमजोर दिल उसका भी<br />
भीग जाती थी आंख उसकी भी<br />
जब वो दिल से मां कहता था।<br />
<br />
मैने देखा लड़ता सैनिक <br />
जो जांबाजी से भिड़ता था<br />
चित कर दे हौसले दुश्मन के <br />
जब वो युदृध करता था<br />
आर-पार का मूड बनाकर<br />
दुश्मन पर टूट पड़ता था।<br />
<br />
मैंने देखा वो भी सैनिक<br />
जो शहीद कहलाता था<br />
टपकता था पानी छत से और आंसू आंख से<br />
ये उसके घर का मंजर था<br />
कुछ नहीं बचा सब खो गया<br />
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया<br />
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया<br />
किसी का लाल किसी का बेटा सो गया।।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-27618047073159688802010-06-05T00:25:00.000-07:002010-06-05T00:25:58.135-07:00हिंसा, हत्या और मरहम की राजनीतिफिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के रिलीज के समय महानायक अमिताभ बच्चन की कही बात याद आती है। वे पहले शख्स थे जिन्होंने कहा था कि फिल्म में देश की गलत तस्वीर पेश की गई। यही कुछ प्रकाश झा की राजनीति में दिखता है। इसमें भी देश की राजनीति की गलत तस्वीर पेश की है। सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जानेे वाले भारत देश में कई विभिन्नताएं हैं मगर जो राजनीति का चेहरा प्रकाश झा ने दिखाया है। वह गले नहीं उतरता। फिल्म को मसाला लगाने में वो यह भी भूल गए कि इसका असर समाज के पहलू को भी उजागर करता है मतलब इससे गलत संदेश जाता है। सबको खुश करने के चक्कर में कोई खुश नहीं होता वाली कहावत यहां भी घटित हो गई। यह फिल्म न तो राजनीति पर बन सकी और न ही किसी विशेष घराने के उपर। यह सिर्फ राजनीति और घटिया राजनीति पर ही घूमती रही। जैसा कि प्रकाश झा दिखाना चाहते थे। अपहरण, गंगाजल जैसी सफल फिल्मों की थीम उन्होंने राजनीति में इस्तेमाल कर दी। प्यार और इमोशन को तवज्जो नहीं दिया गया और नायिका की नायक के बड़े भाई से शादी करा दी गई। नायिका का पिता भी फायदा देख रहा था। भई, ये तो पूरी तरह से गंदी राजनीति की तस्वीर पेश की है। पता नहीं, ऐसा उन्होंने कहां देख लिया। रिश्ते हमारे भारत की पहचान हैं। आदर, सत्कार यहां का मान है। हो सकता है प्रकाश झा ने ऐसा देखा हो या महसूस किया हो, लेकिन क्या किसी एक या दो के भ्रष्ट होने से पूरी राजनीति का चेहरा पढ़ने की वो हिम्मत रखते हैं। <br />
<br />
फिल्में परिवर्तन का एक बड़ा माध्यम हैं। इसका समाज में बड़ा योगदान है। भारत के लोग तो खासकर के बॉलीवुड के दीवाने हैं। असल में, बॉडीवुड से आम आदमी थियेटर के माध्यम से जुड़ता है। इससे सीखता भी है। क्यों, थ्री ईडियट हमें तरक्की, कामयाबी और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करती। तारे जमीं पर हमें बच्चों की भावनाएं समझाने के लिए नहीं उकसाती। लगे रहो मुन्नाभाई क्या हमें गांधीगीरी नही सिखाती। हल्ला बोल क्या बदलाव का सूचक नहीं थी। या ऐसी ही कितनी फिल्में हैं जो हमें आगे बढ़ने की शिक्षा देती हैं। फिर हम राजनीति जैसी फिल्मों को क्यों स्वीकार करें। जो कि भारत की लोकतां़ित्रक प्रणाली को चुनौती देती दिख रही है। हिंसा, हत्या और मरहम की राजनीति को हम क्यों स्वीकार करें? यह मात्र कुछ अराजकतत्वों के राजनीति में आने मात्र से हुआ है। फिर हम पूरी राजनीति को क्यों दूषित मान लें? <br />
<br />
प्रकाश झा हिंसा और हत्या स्पेशलिस्ट होते जा रहे हैं। इसीलिए इसे दिखाने के चक्कर में कहानी से ही भटक गए हैं। इनकी फिल्म न ही हत्या स्पेशल विशेषांक रहा; न ही परिवार विशेष और न ही शिक्षाप्रद। असल में वो गागर में सागर भरना चाहते थे, लेकिन उनकी गागर फूट गईं। फिल्म आने के पहले माना जा रहा था कि यह सोनिया गांधी के जीवन पर बनी होगी। हकीकत में यह फिल्म सोनिया गांधी के व्यक्तित्व को छू तक नहीं पा रही है। कटरीना कैफ को सोनिया गांधी जैसा गैटअप पहनाने से ही यह सोनिया गांधी आधारित फिल्म नहीं हो जाती। ये भी प्रकाश झा का पब्लिसिटी स्टंट रहा, जिससे लोगों को वे जोड़ सकें। असल में, राजनीति यह है जो इन्होंने प्रचार के लिए इस्तेमाल की। <br />
<br />
यहीं कहानी खत्म नहीं हो जाती है। फिल्म का क्लाइमेक्स तो लाजवाब निकला। सीधे महाभारत काल की याद दिया दी। जब इन्होंने दिल खोलकर हत्या के सभी शॉट दिखा दिए और दिमाग में कुछ नहीं सूझा तो महाभारत काल में चले गए। नायक की मां को कुनती बना दिया। उन्होंने भी अजय देवगन को ज्येष्ठ पुत्र संबोधित किया। अजय देवगन को कर्ण, रणबीर कपूर को अर्जुन, नाना पाटेकर को कृष्ण बना दिया। आखिरी में बढ़िया महाभारत दिखाई। नाना उर्फ कृष्ण ने अर्जुन उर्फ रणबीर को उपदेश दिया और मॉडर्न अर्जुन ने भी धनुष की जगह पिस्टल से कर्ण उर्फ अजय देवगन का वध कर दिया। इससे पहले कुनती कर्ण के पास गई थी उसे अपनाने के लिए, लेकिन वहां भी राजनीति की झलक दिख गई। कर्ण अपने दोस्त दुर्योधन मतबल मनोज वाजपेयी के पास चला गया। वाह रही दोस्ती। प्रकाश झा ने राजनीति के नाम पर कम्पलीट डामा पैकेज दिया है पर, दर्शक अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि यह राजनीति गले नहीं उतरती। राजनीति में आज भी बुरे लोगों को उंगली पर गिना जा सकता है। ऐसे गिने-चुने लोग या सोच को केंद्रित कर पूरी राजनीति का चेहरा नहीं बिगाड़ना चाहिए। यह देश राजनीति के बदौलत ही चल रहा है। इसमें अच्छे लोगों की कमी नहीं है। यदि पॉजिटिव सोच के साथ देश निर्वाण को केंद्रित कर फिल्म बनाई जाए तो पूरा देश थियेटर की तरफ मुड़ जाएगा पर इसमें राजनीति मत कीजिएगा।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-23867438439541644992010-06-03T09:08:00.000-07:002010-06-03T09:08:23.996-07:00यह कैसी व्यथाऔरत दुखी होती जब<br />
कहते लोग उसे बेऔलाद<br />
नहीं आंगन में खेलती<br />
कोई कली<br />
देखूं जब सांझ<br />
बेचैनी, तड़प दिल में<br />
आंख में अश्रुधारा<br />
गर बेटी ही होती तो <br />
होता घर में उजियारा।<br />
<br />
मत खरीदो छोटी पायल <br />
ले आओ एक कड़ा<br />
बेटा ही होगा<br />
मेरी जान<br />
सुन लो ये बात जरा<br />
बेटा पाने की हसरत<br />
दिल में पलने लगी<br />
आषाढ़ वसंत सावन<br />
की ऋतु ढलने लगी <br />
नीरस हुआ जीवन<br />
बेबस छाई जवानी<br />
किसकी लगी नजर<br />
नहीं आता कुछ समझ<br />
टूटने लगी अब हिम्मत<br />
जो थी फौलाद<br />
नहीं आई आंगन में <br />
अभी तक कोई औलाद।<br />
<br />
सुनती थी लोगों के ताने वो<br />
जीने के ढूंढती थी<br />
रोज बहाने वो<br />
अश्रु उसके तो बह जाते थे<br />
लेकिन मेरे जम जाते थे<br />
किया होगा हमने किसी <br />
बेटी का तिरस्कार<br />
जो जरूर रही होगी<br />
किसी देवी का अवतार।<br />
<br />
बेटा-बेटी में भेद<br />
सोच ही पुरानी है<br />
बेटा यदि मान है गुरूर है<br />
तो बेटी आंख का पानी है<br />
अब तो जाएंगे दर <br />
देवी के<br />
करेंगे चरणों में <br />
फरियाद<br />
दे दो मुझे बेटी<br />
नहीं हसरत बेटे की।<br />
<br />
ठुकरा के तुम्हारा आशीष<br />
कैसा तड़प रहा हूं<br />
जज्बाती हो रहा हूं<br />
देखो <br />
कैसा बिलख रहा हूं<br />
गर मैंने किया गुनाह है<br />
तो सजा का मैं हकदार हूं<br />
मुझको तो दुनिया कुछ कहती नहीं<br />
फिर उसे क्यों मिलती दुत्कार है<br />
गुनहगार तो मैं हूं<br />
पुरूष प्रधान समाज का आधार मैं हूं<br />
फिर भी वो समाज में पाती तिरस्कार है<br />
गर मैंने किया गुनाह है<br />
तो उसे क्यों मिलती दुत्कार है।<br />
<br />
माता, अब नहीं सहा जाता<br />
देखकर उसके बेबसी के आंसू<br />
अब नहीं जिया जाता<br />
बुला लो अपने पास<br />
यही है अब मेरी आस<br />
या दिखा दो मुझे जीने का आधार<br />
आंगन में खेले बेटी<br />
ऐसा दे दो वरदान<br />
ऐसा दे दो वरदान<br />
ऐसा दे दो वरदान।। <br />
<br />
-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-10587958258988604042010-05-20T10:16:00.000-07:002010-05-20T10:16:33.720-07:00बुढ़िया की व्यथापरवरिश में भूल हुई क्या, न जाने<br />
ढलती उम्र में बच्चे आँख दिखाते हैं<br />
नाजों से पाला था जिनको, न जाने <br />
क्यूँ अब सहारा बनने से कतराते हैं<br />
निवाला अपने मुंह का खिलाया जिनको, न जाने <br />
क्यूँ वे आज साथ खाने से घबराते हैं<br />
सारा दर्द मेरे हिस्से और खुशियाँ उनके, न जाने<br />
क्यूँ वे अब भी दर्द मेरे हिस्से ही छोड़ जाते हैं<br />
उनकी पार्टी मनती है रोशनी में और मेरी साम अँधेरी कोठरी में, न जाने<br />
क्यूँ वे हर बार मुझे ही शामिल करना भूल जाते हैं <br />
उम्र के साथ कमजोर हुई मेरी सोच, न जाने <br />
क्यूँ वे आज मुझे याद करने से डर जाते हैं<br />
जीवन के आखिरी सफर में चेहरे सबके देखने की हसरत में, न जाने<br />
क्यूँ मेरे अपने विदेश में बैठ जाते हैं <br />
अपनी उखरती साँसों के समय साथ उनका चाहा मैंने, न जाने<br />
क्यूँ वे काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं<br />
उम्र भर सबको साथ लेकर चली मैं, न जाने<br />
क्यूँ मेरी विदाई को वे गुमनामी में निपटाते हैं॥Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-182389760899166892010-05-08T09:19:00.001-07:002010-05-08T09:19:59.149-07:00प्यार के नाम<b>अफसाना बनाने चला था मैं<br />
उसको दीवाना बनाने चला था मैं<br />
देख कर इक झलक उसकी<br />
रूह_ऐ तमन्ना कह उठी<br />
अब इबादत करूँ किसकी<br />
खुदा की या उस चाँद की<br />
<br />
दीवाना कर दिया उसकी इक नज़र ने<br />
बेकरार कर दिया उसकी उसी नज़र ने<br />
या खुदा मुझे कोई तो रास्ता बता दे<br />
या वो रुख से नकाब उठा दे<br />
या तू रुख से नकाब उठा दे<br />
<br />
मेरी इक इल्तिजा मन मेरे मौला<br />
मुझको मेरे महबूब का दीदार करा दे<br />
दिखती है उसकी सूरत में तेरी सूरत<br />
कुछ ऐसा कर मेरे मौला<br />
उसके रुख से नकाब हटा दे<br />
<br />
<br />
यदि देना है नज़राना तुझे मेरी बंदगी का<br />
मेरी इबादत का मेरे रोजे का<br />
मेरे मौला कर इशारा कुछ ऐसा<br />
या तू देख मेरी ओर या नज़र उसकी मुझ पर कर दे<br />
<br />
अब और किसी जन्नत का मुझे सबाब नहीं<br />
उसके कदमों में मेरी जन्नत है मौला<br />
बस इक आरजू है इल्तजा है<br />
इक बार रुख से नकाब उठ जाए<br />
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए<br />
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए<br />
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए।। </b>Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-1688282560107882802010-01-22T01:22:00.001-08:002010-01-22T05:54:15.273-08:00भगवान के नाम पत्रःःःःःःःःःःहे परमपिता, आपके ही निर्देश पर ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की। वनस्पति, जलवायु, जीव-जन्तु, पक्षी और हम मनुष्यों को अवतरित किया। आपही के द्वारा रचित संसार में जीवन चक्र सतत गति से चल रहा था। अचानक इसका संतुलन बिगड़ गया। आप नाराज तो नहीं हो गए? सब ग्लोबल वार्मिंग, ग्लोबल वार्मिंग चिल्लाने लगे। अब मिनी आइस एज, मिनी आइस एज कर रहे हैं। वसंत आ गया है। लोगों को पता ही नहीं चला। ठिठुरन इतनी जो थी। मैंने अनोखा वसंत मनाया। अपनी रजाई में पीला खोल चढ़ा लिया। <br />
हे परमपिता परमेश्वर, आपने हम भक्तों को अपनी सबसे अच्छी कृति सोचकर इस धरती पर भेजा और जब उपर से देखा तो आप नाराज हो गए। नीचे हर कोई ब्रह्मा बनना चाहता है। आपने ही हम मनुष्यों को अलग-अलग दिमाग दे दिए। अब आप ही क्रोधित हो रहे हैं। हे परमपिता, सुना है आप सबको एक ही नजर से देखते हैं फिर इस बार भेदभाव क्यों? खास आदमी साधन संपन्न हो रहा है और आम आदमी नंगा हो रहा है। क्या आप भी आम आदमी से रूठे हुए हैं। ये मत सोचिए कि वे आपको पूजते नहीं। हां, वे देशी घी और मेवे को भोग चढ़ाते नहीं। यदि ये ऐसा कर सकते तो आम क्यों होते? खास न होते। अब इनका दर्द आप नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा? प्रभु, ठंड तो ठीक थी, अब ये गलन क्यों मचा रखी है? बूढ़ों के जोड़ खुल गए। बच्चों के होंठ सिल गए। महिलाओं की पीठ धर गई और जो बचे वो मौसम में निपट गए। गेहूं की फसल पक गई। आलू को पाला मार रहा है। ठंड प्रचंड होती जा रही है। <br />
प्रभु देखिए, स्टेशन, बस अड्डों और मंदिर-मस्जिदों के बाहर लोग ठिठुर रहे हैं। आपके खास आदमी कंबल तक नहीं बंटवा रहे हैं और जो आपकी दया से मिल भी रहे हैं, उनमें कमीशन सेट हो रहे हैं। आम आदमी कहते हैं वो गरमाते नहीं हैं। हे परमपिता, आपने इस बार विचित्र सर्दी भेजी है जो रिकार्ड बना रही है। कई सूखे पत्ते ’लोग’ टपक चुके हैं और कई टपकने की तैयारी में हैं। <br />
हे परमेश्वर, आम आदमी के घर की महिलाएं आपको कोस रही हैं। सब्जी, रोटी तक तो ठीक था, बच्चों के मुंह से दूध तक छीन लिया। कैसी सरकार दी आपने, काहे की सरकार दी आपने। आपके तथाकथित भक्तों ने मिलों में चीनी डंप कर ली। आपके ही शरद पवार जैसे साधकों ने चुनावों के समय सरकारी जमा चीनी बंटवा दी। अब मांग अधिक है और पूर्ति है नहीं। चीनी आयात कोई कर नहीं रहा। अब तो चीनी का बुरादा भी चीनी के दामों में बिक रहा है। भगवन, आप नाराज हैं कि गरीब साधक भोग नहीं लगाते। पहले तो माताओं ने बच्चों को फीका दूध पिलाना सिखाया। अब उन्हें पीने को दूध ही नहीं मिल रहा। आप ही बताएं, आपको भोग कैसे लगाएं? भगवन यही कारण तो नहीं जो आप नाराज हैं और यदि यही कारण है तो आप कैलाश की चोटी से नीचे उतर आइए क्योंकि इस मौसम का असर आप पर भी पड़ सकता है। प्रभु हम तो गरीब हैं, मर जाएंगे। करोड़ों, अरबों भक्तों की आपमें आस्था है। आप ऐसा कीजिए, इस सर्दी एयरकंडीशन और रूमहीटर वाले भक्तों के यहां भ्रमण कर आएं। कहीं गरीब की कुटिया में आपको भी नजला न हो जाए।<br />
आपका सेवक<br />
<br />
-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-74930874302389422282009-12-30T22:56:00.000-08:002009-12-30T22:56:02.951-08:00नाली साफ करा दो, लोग गिरने वाले हैंःःःःःःःःःःःःपियक्कड़ों की हर नुक्कड़ में लगेंगी महफिलें<br />
लड़खड़ाते कदमों का नाली ही मुकाम होगा।।<br />
<br />
नया साल शुरू होने वाला है। उसका सुरूर छाने लगा है। लोगों ने रात का कोटा एक रात पहले ही रख लिया है। पुलिस कहती है दस बजे के बाद पियोगे तो पेलेंगे। हम कहते हैं रोक के दिखाओ। साले हम तो जरूर पिएंगे। कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं। <br />
अबे खुशी तो असली हम ही मनाएंगे। तुम, पालक खाने वालों क्या जानो नए साल की खुशी। पुराने साल भी आलू खाई थी और नए साल में भी आलू ही खाओगे। कभी पनीर का टुकड़ा मुंह में गिर गया तो खुशी का लम्हा मान लिया। अबे हमसे सीखो भले ही भीख मांगनी पड़े, लेकिन चिली पनीर से नीचे समझौता नहीं करते हैं। तुम साले क्या जानो मुर्गे और लेग पीस का जायका। मछली, झोर और रायता। अण्डा करी और मक्खन का तड़का। आलू खाने वाले क्या समझेंगे इसका मर्म। ऐसों को तो भगवान ने भी नहीं छोड़ा इसीलिये तो यमराज रूपी महंगाई को इनके पीछे छोड़ दिया। अब बेटा दाल खा के दिखाओ। हम भी देखें। थाली में कितनी सब्जी ले रहे हो जरा बताओ। विटामिन की कमी हो रही है। आयरन पूरा नहीं मिल रहा है। हड्डियां आवाज करने लगी हैं। जरा सी हवा चली नहीं कि नजला हो गया। अब सर्दी तीन दिन से पहले थोड़े ही जाएगी। तब तक तो उसे परिवार में बांट दोगे क्योंकि कसम खाई है कि रूमाल मुंह में नहीं रखोगे। <br />
पुराना साल कई वादों, इरादों में ही बीत गया। अब बेटा नए साल में क्या करना है। पापा कसम सच बता रहे हैं सुरीली का गाना तो नहीं सुनेंगे। कुछ कमाल ही करेंगे। अबे कहने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना भी पड़ेगा। वरना नया साल भी निकल जाएगा और पता भी नहीं चल पाएगा। और बेटा सच तो ये ही है कि अभी पालक खा लो वरना ’नशीला पानी’ लीवर खराब कर देगा और इसी पालक, मूंग से ही जीवन जीना पड़ेगा। तब सालों अफसोस करोगे कि ’पानी’ क्यों पिया, पालक ही पी लेते। चलो, समझो तो भला नहीं तो रामभला। मैं भी कोशिश ही कर सकता हूं। तुम्हारे ही शब्दों में प्रयास किया है। नहीं तो कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।<br />
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नया साल सभी के लिए मंगल होःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः<br />
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हार्दिक शुभकामनाएंःःःःःःःःःःःःःःः<br />
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-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-69977779369819005572009-12-07T22:42:00.001-08:002009-12-07T22:42:26.115-08:00कुंवर ने बुलंद किया सियासत का झण्डाअलीगढ़। अस्सलाम वालेअकुम... जैसे ही एएमयू के कैनेडी हाॅल में राहुल आए, उनके मुंह से निकलने वाले यह पहले शब्द थे। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पूरी तैयारी के साथ अलीगढ़ व एटा आए और पूरे उत्साह के साथ लोगों से रूबरू हुए। मीडिया से दूरी बनाते हुए सोची समझी रणनीति के तहत राहुल 2012 के चुनावों की प्रारंभिक तैयारी कर गए। वे यूथ कांग्रेस के सदस्यों के दिमाग की चाभी अभी से टाइट कर गए कि टिकट या पद लेना हो तो जमीनी स्तर पर काम करें, तभी उनकी दावेदारी के बारे में सोचा जाएगा। वह यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपनी रणनीति समझाकर चले गए।<br />
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राहुल का अलीगढ़ व एटा दौरा सियासी लोगों खलबली मचा गया। लिब्रहान कमेटी की रिपोेर्ट संसद में पेश हो चुकी है। छह दिसंबर को बाबरी एक्शन कमेटी के लोग विवादित ढांचा विध्वंस की बरसी मनाते हैं। वहीं सात दिसंबर से लिब्रहान की रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होनी थी। ऐसे में मुस्लिम नेताओं को मरहम और मुस्लिम वोटों में संेध लगाने के लिए भी राहुल ने एएमयू को चुना। शायद इसीलिए मीडिया को भी दूर ही रखा गया। उन्होंने कार्यकर्ताओं को अभी से जुट जाने और जमीनी स्तर से काम करने की सीख दी। राहुल उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपनी तैयारी की शुरुआत कर दी है। बता दें कि कल्याण सिंह एटा लोकसभा सीट से सांसद हैं और बाबरी विध्वंस के आरोपी भी हैं। इसीलिए ब्रज क्षेत्र में अलीगढ़ के बाद अन्य शहरों को न चुनकर एटा को ही चुना गया। राहुल का यह दौरा तो खत्म हो गया, लेकिन सियासत की हवा में गरमी बढ़ा गया। राहुल के दौरे में साफ संदेश था कि अब यूपी की बारी है। <br />
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-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-53945141247720856882009-12-06T23:14:00.001-08:002009-12-06T23:16:31.784-08:00कभी नहीं भूल पाऊंगा वो 24 घंटे<b>एडवेंचर और हर तरह का एडवेंचर मौज-मस्ती वो भी धार्मिक यात्रा में। कभी नहीं भुला पाऊंगा। 4 दिसंबर को 10ः30 बजे आगरा से मित्र दीक्षांत तिवारी ’सोनी’ का फोन आया कि माता कैला देवी के दर्शनों के लिए चलना है। कोई प्रोग्राम सेट नहीं था। हालांकि एक दिन पहले बस बात हुई थी। मैंने भी हामी भर दी। पता चला कि दिल्ली से एक और मित्र जयंत अवस्थी ’गोपाल बाबू’ आ रहे हैं। मैं अलीगढ़ से करीब 11 बजे निकल गया। अब ये 11 बजे से अगले दिन के 11 बजे तक जो सफर हुआ, बड़ा ही मजेदार था क्योंकि इसमें हमने डग्गेमारी से लेकर मिडिल क्लास के हर क्लास तक का सफर किया। </b><br />
अलीगढ़ बस अड्डे से मथुरा गया। फोन पर बात हो ही रही थी। सबको मथुरा में मिलना था फिर भी दीक्षांत भरतपुर निकल गया। कोई बात नहीं हम और गोपाल बाबू मथुरा से बस से भरतपुर तक पहुंचे। वहां उतरकर हमने मूली खाई। अजीब लग रहा है न। जैसे ही भरतपुर स्टेशन पहुंचे तो देखा जनशताब्दी खड़ी थी और रिजर्वेशन तो छोड़िए टिकट तक नहीं मिल रहा था। फिर हमने टीटी को सेट किया और उसकी जेब गरम की। उसने हमें हिण्डोन सिटी तक सीट दे दी और खाने की उत्तम व्यवस्था भी करा दी। पैसे में बड़ी ताकत है। बिना टिकट ही सफर करा दिया। वो भी फस्र्ट क्लास। हिण्डोन सिटी से हम डग्गेमार वाहन में कैला जी के लिए सवार हुए। उस गाड़ी में बैठने का नियम था कि पीछे आराम से दस और जबरदस्ती से 12 बैठते हैं। ऐसा डग्गेमार चालक ने अकड़ के कहा। करते भी क्या सिर्फ यही व्यवस्था थी, सो हम भी सवार हो गए माता कैला जी का नाम लेके। <br />
करौली के बाद चालक मूड में आ गया और धीरे-धीरे गाड़ी बढ़ाने लगा। देखा तो साला नीट पी रहा था वो भी देशी। जय हो माता की। <br />
दरबार में जाने के बाद सब भूल गए, इतने अच्छे दर्शन जो हुए। अब अंधेरा हो गया था और लेट भी हो रहे थे। पूरा डग्गेमार वाहन ही हायर किया जो हमें साधन न मिलने पर हिण्डोन सिटी तक छोड़ने के आश्वासन के साथ करौली तक लाया। वहां से हमने चाय की चुस्की के साथ चैपर ’हेलीकाॅप्टर नहीं, लोकल टेम्पो’ किराये पर लिया, लेकिन तब तक मैंने एक ट्रक को रुकवा लिया। फिर क्या ट्रक में हुए हम तीनों सवार। और फिर दिल बोले हड़िप्पा। बल्ले-बल्ले, मजा ही आ रहा था। शहर से पांच किमी पहले ही ट्रक ने रोक दिया और आरटीओ की तरफ इशारा कर आगे जाने से मना कर दिया। सारा मजा काफूर हो गया। समय देखते हुए उतर लिए और पैदल ही चल दिए। करीब आधा किमी ही चले थे कि पीछे से खाली एम्बुलेंस आ गई और हम उस पर सवार हो गए। हिण्डोन सिटी स्टेशन पर हम उतरे। सामने चाय वाले की दुकान दिखी। गोपाल बाबू और सोनी चाय के बड़े दीवाने हैं। फिर मैं भी साथ हो लिया। वैसे बता दूं कि राजस्थान में जहां भी चाय पी, मजा आ गया। एक बार तो पूछ भी लिया कि क्या उंटनी के दूध की बनी है। जनरल की टिकट ली और दून एक्सप्रेस का इंतजार किया। स्टेशन पर एक पत्ता पकोड़ी का लिया जिसे तीनों ने मिलकर खाया। पकौड़ी ठंडी जो थी। स्टेशन पर अचानक ही कोसी जाने का प्रोग्राम बन गया। शनिदेव की कृपा थी। दून का स्टाॅपेज भी था, सो कोसी तक का टिकट ले लिया। गाड़ी आई सवार हो गए। टीटी महाराज ने दो बर्थ भी दे दिए। वो भी डग्गेमारी में। रात सवा तीन बजे कोसी में उतरे। पहली बार स्टेशन देखा। अच्छा बना था। आगरा के राजामंडी स्टेशन को टक्कर दे रहा था। स्टेशन के बाहर चाय की चुस्की के साथ ’बरसात के मौसम में, तनहाई के आलम में....’ गाने का दो बार मजा लिया। जब तक हमारा रिपोर्टर हमें लेने आ गया था। <br />
एडवेंचर यहीं खत्म नहीं हुआ था। हाइवे स्थित उसके होटल में थोड़ी देर आराम करने के बाद हम शनिदेव के दर्शन करने निकल पड़े। उसने हमें विधि बताई। पहले एक कोस की परिक्रमा लगाना फिर बिहारी जी के दर्शन करना और आखिरी में शनिदेव जी के। कोकिलावन चैकी प्रभारी से हमारी बात भी हो गई। सुबह साढ़े चार बजे दिल्ली हाइवे पर कोई वाहन नहीं मिल रहा था। हम चार ’तीन तो हम थे ही’ और चैथा गाड़ी वापस लाने के लिए भी मोटरसाइकिल में बैठा। मैं खुद टंकी के उपर बैठा था। कसम से चार को बैठा कर मोटरसाइकिल में डग्गेमारी करने में बहुत मजा आ रहा था वो भी दिल्ली हाइवे पर। ये मेरे जीवन का सबसे यादगार मूमेंट था। जिसे मैंने खूब इन्ज्वाॅय किया। कोसी तिराहे से कोकिलावन के लिए हमने एक चैपर किया। वो भी शानदार था। 007 जेम्स बांड की तरह चला रहा था। ऊपर से सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे। हालत खराब कर दी। खैर वहां पहुंचे, परिक्रमा कर विधिविधान से दर्शन किए। चैकी प्रभारी साथ ही था। पहले दर्शन इतने इत्मीनान से किए कि मन आनंदित हो गया। वहां से फिर कोसी स्टेशन आए। क्या टाइमिंग थी? सुबह सवा सात बजे थे और गोपाल बाबू को आठ बजे गाजियाबाद के लिए गाड़ी मिल गई। हमें भी तुरंत ही पंजाब मेल मिल गई। मित्र तो अपना चला गया आगरा और मैंने द्वारिकाधीश के दर्शन कर अलीगढ़ के लिए प्रस्थान किया। जब घर से निकला था तो भी 11 बजे थे। अगले दिन जब घर आया तो भी 11 ही बजे थे। मजेदार रहे ये 24 घंटे। वाह।।।<br />
<br />
<b>मित्र दीक्षांत और गोपाल बाबू को धन्यवाद</b><br />
<br />
आपका <br />
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-ज्ञानेन्द्र, हिन्दुस्तान अलीगढ़Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-55772239927563872162009-12-02T08:37:00.000-08:002009-12-02T08:37:20.770-08:00बेचारे पत्रकारएक कहानी सुनाता हूं। एक यूनिट थी। उसमें एक नया पत्रकार आया। सम्पादक ने उसको भरोसा दिलाया कि आने वाले समय में सबसे पहले उसका ही प्रमोशन करेंगे। वो भी तन्मयता से काम में जुट गया। अब बदलाव का समय आया, लेकिन संपादक का। उन्हें प्रमोट कर दूसरी यूनिट भेज दिया गया। बेचारे पत्रकार! मरता क्या न करता, काम तो करना ही था। अब दूसरे सम्पादक आए। उनकी नजर में वो बेकार था। उसकी मिट्टी कुट रही थी फिर भी काम तो करना ही था। सो जुट गए, काम में। ये क्या फिर बदलाव आया। इस बार वो भी प्रमोट होकर चले गए। बेचारे पत्रकार फिर रह गए, लेकिन यह क्या? इस बार बेचारेे पत्रकार के चेहरे पर मुस्कान थी। लगता है पहले वाले के जाने की थी। अब नए सम्पादक से फिर आस जग गई, लेकिन देखना यह है कि इनका नंबर कब आएगा। कहीं बेचारे पत्रकार फिर न रह जाएं। <br />
आपको सलाह तेल लगाओ, काम चलाओ।।<br />
<br />
आपका शुभेच्छु<br />
<br />
-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-62447740011047201572009-10-26T23:24:00.001-07:002009-10-26T23:24:36.391-07:00अखबारी दुनिया का नया पाठरोटी तो कुत्ते भी खाते हैं, शराब पिया करो।।<br />
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ये दोहा पढ़कर अंदाजा हो ही गया होगा कि किसी शराब प्रेमी ने ये लाइन कही होंगी। जिले की पत्रकारिता के भी बड़े अनुभव होते हैं। एक नशीले शायर ने ये बातें कह दीं। अब मेरा क्या कसूर मैं शराब नहीं पीता हूं। वैसे आफर खूब मिल रहे हैं और मैं सिरे से नकार रहा हूं। इसके परिणाम भी मिले। लोगों ने पूछना बंद कर दिया। मुझे भी अच्छा लगा। कम से कम उनकी बिरादरी से बाहर तो हो गया। जनाब! ऐसे चाहने वाले आपको भी मिल जाएंगे, जब आप जिले की पत्रकारिता में आएंगे। आजकल हमसफर प्याले से बनाया जाता है प्यार से नहीं।।<br />
<br />
अब सिर्फ पीने वालां पर ही बात होती है<br />
नहीं पीने वाले की क्या औकात होती है।।<br />
<br />
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-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-8821175719887589352009-10-03T02:05:00.000-07:002009-10-03T02:10:46.730-07:00मक्खन से भी आगे निकला लौंग का तेलतथाकथित पत्रकारों का नया कारनामा<br /><br /><br />कबिरा तेरे देश में भांति-भांति के जीव<br />कुछ तेलू, पेलू और कुछ खबरनबीस।।<br /><br />ऐसे ही जीवों की एक प्रजाति है पत्रकार। इनके बारे में क्या बताएं, बेचारे दुखिया हैं।।<br />इसीलिए इनको मेमना भी कहा जाता है। मेमना इसलिए क्योंकि मुलायम गोश्त खाने वाले कभी भी इन्हें हलाल कर सकते हैं। अब पत्रकार हलाल होगा या झटका, इस बहस में मत पड़िए। हर पत्रकार अपनी किस्मत लिखा के लाया है। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की अनेक नस्लें हैं। प्रदेश छोड़िए, शहर में ही नस्लों का अंबार मिल जाएगा। हर पत्रकार अलग ही नसल का होता है। अब किसकी क्या नसल है ये तो उसकी श्रद्धा पर ही निर्भर होता है। हालांकि नस्लीय पत्रकार की भी कई प्रजातियां हैं। अब ये तो अवसर की बात है। किसको क्या मिले ये भी मुकद्दर की बात है। <br />खैर वर्तमान में पत्रकारों की हाइब्रिड नसल ही सबसे अच्छी मानी जाती है। इस <br />नसल में मक्खन, घी, तेल सभी का प्रयोग किया जाता है। इसमें क्वालिटी मेनटेन करना ही प्रमुख उद्देश्य होता है। जैसे ही क्वालिटी डैमेज होती है, वैसे ही काम लग जाता है। फिर वही पत्रकार तथाकथित पत्रकार की श्रेणी में आ जाते हैं। एक सर्वे में पता चला है कि बाजार से घी, तेल, मक्खन तथा इनसे संबंधित तैलीय व चिकनाईयुक्त पदार्थ पहले ही बुक हो चुके हैं या खरीदे जा चुके हैं। <br />कुछ करिश्माई तथाकथित पत्रकारों ने नए आविष्कार खोज निकाले हैं और मंदी के इस दौर में मार्केट में नए प्रोडक्ट्स लांच कर दिए हैं। इन प्रोडक्ट्स में ज्यादा चिकनाई है। जैसे सांडे का तेल, लहसुन और लौंग का तेल। हमने ऐसे कुछ तथाकथित पत्रकारों से जानना चाहा कि मंदी के दौर में भी इतने महंगे और किफायती तेल की क्या जरूरत थी। झट से पलट कर बोले, सर्दी शुरू हो रही है। निष्कर्ष ये ही निकलता है कि सिस्टम की कितनी भी सफाई क्यों न कर ली जाए। ऐसी जंगली घास उगती ही रहेगी। <br /><br />-ज्ञानेन्द्रGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-23444158853835670092009-09-18T23:23:00.000-07:002009-09-18T23:25:54.099-07:00सोच बदलें, हिन्दी का कल्याण होगा<a href="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEePjbmp6I/AAAAAAAAAFk/9vkfd_lsWDg/s1600-h/Neeraj+ji7.jpg"><img style="float:right; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 134px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEePjbmp6I/AAAAAAAAAFk/9vkfd_lsWDg/s200/Neeraj+ji7.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382116282242344866" /></a><br /><a href="http://2.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEePC0KaPI/AAAAAAAAAFc/QoImi9h33CE/s1600-h/Neeraj+ji4.jpg"><img style="float:right; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 143px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEePC0KaPI/AAAAAAAAAFc/QoImi9h33CE/s200/Neeraj+ji4.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382116273486981362" /></a><br /><a href="http://1.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeOj7PwPI/AAAAAAAAAFU/8OelOGOYMKs/s1600-h/Neeraj+ji2.jpg"><img style="float:right; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 147px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeOj7PwPI/AAAAAAAAAFU/8OelOGOYMKs/s200/Neeraj+ji2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382116265195192562" /></a><br /><a href="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeOdRHVCI/AAAAAAAAAFM/KM5FYV4loKw/s1600-h/Neeraj+ji5.jpg"><img style="float:right; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 160px; height: 200px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeOdRHVCI/AAAAAAAAAFM/KM5FYV4loKw/s200/Neeraj+ji5.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382116263407866914" /></a><br /><a href="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeN0yxUbI/AAAAAAAAAFE/zZg1eqFa69A/s1600-h/Neeraj+ji1.jpg"><img style="float:right; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 143px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_MlOtflfpClE/SrEeN0yxUbI/AAAAAAAAAFE/zZg1eqFa69A/s200/Neeraj+ji1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5382116252543177138" /></a><br />हिन्दी को लेकर पद्म भूषण और पद्मश्री गोपालदास नीरज जी के दिल की व्यथा<br /><br />हिन्दी भारत मां की बिन्दी<br />जन-गण-मन कल्याणी है<br />ये भाषा भर नहीं<br />भारतीय की आंखों का पानी है।<br /><br />पद्म भूषण और पद्मश्री गोपालदास नीरज जी के मुंह से अचानक ही ये शब्द निकल पड़े। उन्होंने पीड़ा जताते हुए प्रश्न किया कि हिन्दी दिवस पर ही हिन्दी को क्यों पूजा जाता है? हिन्दी को हम मातृभाषा कहते हैं, लेकिन कुर्सी पर बैठे अफसर सारा काम अंगे्रजी में ही करना पसंद करते हैं। सिर्फ हिन्दी पखवाड़ा मनाकर ही इतिश्री कर ली जाती है। उन्होंने बाॅलीवुड फिल्मों को हिन्दी के विस्तार के लिए अहम बताया और इसका उदाहरण ‘जय हो‘ गीत से दिया जो विश्वभर में चर्चित है।<br />हिन्दी की महत्ता और विकास न होने की मुख्य वजह वे लोगों की मानसिकता को मानते हैं। उन्होंने बताया कि उच्चवर्गी परिवारों से तुलना की होड़ में मध्यवर्गीय परिवार भाग रहे हैं। इसके पीछे सीढ़ी का काम अंग्रेजी कर रही है। इस कारण हिन्दी पिछड़ती जा रही है। हिन्दी की दुर्दशा के लिए लोगों की मानसिकता ‘सोच‘ जिम्मेदार है। जिस दिन वह बदल जाएगी, हिन्दी भी सुधर जाएगी। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि बच्चा जब पैदा होता है तो हिन्दी में ही रोता है। आ... वह उर्दू या किसी अन्य भाषा में नहीं रोता। पाक, अफगान और ईरान के बच्चे भी हिन्दी में ही रोते हैं।<br />हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिलने का मलाल आज भी टीसता है। हिन्दी कवि और साहित्यकारों की दुर्दशा भी उनकी आंखों में नजर आई। उन्होंने बताया कि हैरी पाॅटर और चेतन भगत को तो पढ़ने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ गई, लेकिन हिन्दी साहित्य से लोग दूरी बनाए हुए हैं। इस कारण साहित्यकारों और कवियों की स्थिति हमेशा दयनीय ही रही। यदि एक व्यक्ति महीने में भी 100 रुपये हिन्दी पुस्तकों पर खर्च करे तो भी हिन्दी कवियों और साहित्यकारों को गरीबी नहीं झेलनी पड़ेगी। उन्होंने बताया कि वे अभी तक कवि सम्मेलन के मंचों पर पाठ करते हैं और तीन अक्टूबर को कवि सम्मेलन में भाग लेने देवरिया जा रहे हैं। स्वास्थ्य गड़बड़ होने के बावजूद इस उम्र में भी संघर्ष पर वह बोले कि सेहत से बड़ा पेट है। <br />अंत में वे बोल ही पड़े....<br />अपनी भाषा के बिना राष्ट्र न बनता राष्ट्र<br />रहे वहां सौराष्ट्र या बसे वहां महाराष्ट्र।।Ghar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8731686794684439229.post-76750169623756483582009-09-18T02:04:00.001-07:002009-09-18T02:04:25.443-07:00main bhi aa gaya blogging meinGhar ki bat haihttp://www.blogger.com/profile/05991891467157928710noreply@blogger.com0