Sunday, December 6, 2009

कभी नहीं भूल पाऊंगा वो 24 घंटे

एडवेंचर और हर तरह का एडवेंचर मौज-मस्ती वो भी धार्मिक यात्रा में। कभी नहीं भुला पाऊंगा। 4 दिसंबर को 10ः30 बजे आगरा से मित्र दीक्षांत तिवारी ’सोनी’ का फोन आया कि माता कैला देवी के दर्शनों के लिए चलना है। कोई प्रोग्राम सेट नहीं था। हालांकि एक दिन पहले बस बात हुई थी। मैंने भी हामी भर दी। पता चला कि दिल्ली से एक और मित्र जयंत अवस्थी ’गोपाल बाबू’ आ रहे हैं। मैं अलीगढ़ से करीब 11 बजे निकल गया। अब ये 11 बजे से अगले दिन के 11 बजे तक जो सफर हुआ, बड़ा ही मजेदार था क्योंकि इसमें हमने डग्गेमारी से लेकर मिडिल क्लास के हर क्लास तक का सफर किया।
अलीगढ़ बस अड्डे से मथुरा गया। फोन पर बात हो ही रही थी। सबको मथुरा में मिलना था फिर भी दीक्षांत भरतपुर निकल गया। कोई बात नहीं हम और गोपाल बाबू मथुरा से बस से भरतपुर तक पहुंचे। वहां उतरकर हमने मूली खाई। अजीब लग रहा है न। जैसे ही भरतपुर स्टेशन पहुंचे तो देखा जनशताब्दी खड़ी थी और रिजर्वेशन तो छोड़िए टिकट तक नहीं मिल रहा था। फिर हमने टीटी को सेट किया और उसकी जेब गरम की। उसने हमें हिण्डोन सिटी तक सीट दे दी और खाने की उत्तम व्यवस्था भी करा दी। पैसे में बड़ी ताकत है। बिना टिकट ही सफर करा दिया। वो भी फस्र्ट क्लास। हिण्डोन सिटी से हम डग्गेमार वाहन में कैला जी के लिए सवार हुए। उस गाड़ी में बैठने का नियम था कि पीछे आराम से दस और जबरदस्ती से 12 बैठते हैं। ऐसा डग्गेमार चालक ने अकड़ के कहा। करते भी क्या सिर्फ यही व्यवस्था थी, सो हम भी सवार हो गए माता कैला जी का नाम लेके।
करौली के बाद चालक मूड में आ गया और धीरे-धीरे गाड़ी बढ़ाने लगा। देखा तो साला नीट पी रहा था वो भी देशी। जय हो माता की।
दरबार में जाने के बाद सब भूल गए, इतने अच्छे दर्शन जो हुए। अब अंधेरा हो गया था और लेट भी हो रहे थे। पूरा डग्गेमार वाहन ही हायर किया जो हमें साधन न मिलने पर हिण्डोन सिटी तक छोड़ने के आश्वासन के साथ करौली तक लाया। वहां से हमने चाय की चुस्की के साथ चैपर ’हेलीकाॅप्टर नहीं, लोकल टेम्पो’ किराये पर लिया, लेकिन तब तक मैंने एक ट्रक को रुकवा लिया। फिर क्या ट्रक में हुए हम तीनों सवार। और फिर दिल बोले हड़िप्पा। बल्ले-बल्ले, मजा ही आ रहा था। शहर से पांच किमी पहले ही ट्रक ने रोक दिया और आरटीओ की तरफ इशारा कर आगे जाने से मना कर दिया। सारा मजा काफूर हो गया। समय देखते हुए उतर लिए और पैदल ही चल दिए। करीब आधा किमी ही चले थे कि पीछे से खाली एम्बुलेंस आ गई और हम उस पर सवार हो गए। हिण्डोन सिटी स्टेशन पर हम उतरे। सामने चाय वाले की दुकान दिखी। गोपाल बाबू और सोनी चाय के बड़े दीवाने हैं। फिर मैं भी साथ हो लिया। वैसे बता दूं कि राजस्थान में जहां भी चाय पी, मजा आ गया। एक बार तो पूछ भी लिया कि क्या उंटनी के दूध की बनी है। जनरल की टिकट ली और दून एक्सप्रेस का इंतजार किया। स्टेशन पर एक पत्ता पकोड़ी का लिया जिसे तीनों ने मिलकर खाया। पकौड़ी ठंडी जो थी। स्टेशन पर अचानक ही कोसी जाने का प्रोग्राम बन गया। शनिदेव की कृपा थी। दून का स्टाॅपेज भी था, सो कोसी तक का टिकट ले लिया। गाड़ी आई सवार हो गए। टीटी महाराज ने दो बर्थ भी दे दिए। वो भी डग्गेमारी में। रात सवा तीन बजे कोसी में उतरे। पहली बार स्टेशन देखा। अच्छा बना था। आगरा के राजामंडी स्टेशन को टक्कर दे रहा था। स्टेशन के बाहर चाय की चुस्की के साथ ’बरसात के मौसम में, तनहाई के आलम में....’ गाने का दो बार मजा लिया। जब तक हमारा रिपोर्टर हमें लेने आ गया था।
एडवेंचर यहीं खत्म नहीं हुआ था। हाइवे स्थित उसके होटल में थोड़ी देर आराम करने के बाद हम शनिदेव के दर्शन करने निकल पड़े। उसने हमें विधि बताई। पहले एक कोस की परिक्रमा लगाना फिर बिहारी जी के दर्शन करना और आखिरी में शनिदेव जी के। कोकिलावन चैकी प्रभारी से हमारी बात भी हो गई। सुबह साढ़े चार बजे दिल्ली हाइवे पर कोई वाहन नहीं मिल रहा था। हम चार ’तीन तो हम थे ही’ और चैथा गाड़ी वापस लाने के लिए भी मोटरसाइकिल में बैठा। मैं खुद टंकी के उपर बैठा था। कसम से चार को बैठा कर मोटरसाइकिल में डग्गेमारी करने में बहुत मजा आ रहा था वो भी दिल्ली हाइवे पर। ये मेरे जीवन का सबसे यादगार मूमेंट था। जिसे मैंने खूब इन्ज्वाॅय किया। कोसी तिराहे से कोकिलावन के लिए हमने एक चैपर किया। वो भी शानदार था। 007 जेम्स बांड की तरह चला रहा था। ऊपर से सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे। हालत खराब कर दी। खैर वहां पहुंचे, परिक्रमा कर विधिविधान से दर्शन किए। चैकी प्रभारी साथ ही था। पहले दर्शन इतने इत्मीनान से किए कि मन आनंदित हो गया। वहां से फिर कोसी स्टेशन आए। क्या टाइमिंग थी? सुबह सवा सात बजे थे और गोपाल बाबू को आठ बजे गाजियाबाद के लिए गाड़ी मिल गई। हमें भी तुरंत ही पंजाब मेल मिल गई। मित्र तो अपना चला गया आगरा और मैंने द्वारिकाधीश के दर्शन कर अलीगढ़ के लिए प्रस्थान किया। जब घर से निकला था तो भी 11 बजे थे। अगले दिन जब घर आया तो भी 11 ही बजे थे। मजेदार रहे ये 24 घंटे। वाह।।।

मित्र दीक्षांत और गोपाल बाबू को धन्यवाद

आपका

-ज्ञानेन्द्र, हिन्दुस्तान अलीगढ़

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