औरत दुखी होती जब
कहते लोग उसे बेऔलाद
नहीं आंगन में खेलती
कोई कली
देखूं जब सांझ
बेचैनी, तड़प दिल में
आंख में अश्रुधारा
गर बेटी ही होती तो
होता घर में उजियारा।
मत खरीदो छोटी पायल
ले आओ एक कड़ा
बेटा ही होगा
मेरी जान
सुन लो ये बात जरा
बेटा पाने की हसरत
दिल में पलने लगी
आषाढ़ वसंत सावन
की ऋतु ढलने लगी
नीरस हुआ जीवन
बेबस छाई जवानी
किसकी लगी नजर
नहीं आता कुछ समझ
टूटने लगी अब हिम्मत
जो थी फौलाद
नहीं आई आंगन में
अभी तक कोई औलाद।
सुनती थी लोगों के ताने वो
जीने के ढूंढती थी
रोज बहाने वो
अश्रु उसके तो बह जाते थे
लेकिन मेरे जम जाते थे
किया होगा हमने किसी
बेटी का तिरस्कार
जो जरूर रही होगी
किसी देवी का अवतार।
बेटा-बेटी में भेद
सोच ही पुरानी है
बेटा यदि मान है गुरूर है
तो बेटी आंख का पानी है
अब तो जाएंगे दर
देवी के
करेंगे चरणों में
फरियाद
दे दो मुझे बेटी
नहीं हसरत बेटे की।
ठुकरा के तुम्हारा आशीष
कैसा तड़प रहा हूं
जज्बाती हो रहा हूं
देखो
कैसा बिलख रहा हूं
गर मैंने किया गुनाह है
तो सजा का मैं हकदार हूं
मुझको तो दुनिया कुछ कहती नहीं
फिर उसे क्यों मिलती दुत्कार है
गुनहगार तो मैं हूं
पुरूष प्रधान समाज का आधार मैं हूं
फिर भी वो समाज में पाती तिरस्कार है
गर मैंने किया गुनाह है
तो उसे क्यों मिलती दुत्कार है।
माता, अब नहीं सहा जाता
देखकर उसके बेबसी के आंसू
अब नहीं जिया जाता
बुला लो अपने पास
यही है अब मेरी आस
या दिखा दो मुझे जीने का आधार
आंगन में खेले बेटी
ऐसा दे दो वरदान
ऐसा दे दो वरदान
ऐसा दे दो वरदान।।
-ज्ञानेन्द्र
भावनाओं को सुन्दर शब्द दिए हैं.....बेटियां मन की धुन होती हैं....उनसे घर में रौनक होती है
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना .. भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteguru dil se likhi hai tumne. good...keep it up
ReplyDeleteकल मंगलवार को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
sunder abhivyakti.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकोई पुरूष ऐसा भी सोच सकता है
ReplyDeleteआश्चर्य! और बधाई
सभी पुरूष इस कविता को जरूर पढ़ें
-दीक्षांत