Wednesday, December 2, 2009

बेचारे पत्रकार

एक कहानी सुनाता हूं। एक यूनिट थी। उसमें एक नया पत्रकार आया। सम्पादक ने उसको भरोसा दिलाया कि आने वाले समय में सबसे पहले उसका ही प्रमोशन करेंगे। वो भी तन्मयता से काम में जुट गया। अब बदलाव का समय आया, लेकिन संपादक का। उन्हें प्रमोट कर दूसरी यूनिट भेज दिया गया। बेचारे पत्रकार! मरता क्या न करता, काम तो करना ही था। अब दूसरे सम्पादक आए। उनकी नजर में वो बेकार था। उसकी मिट्टी कुट रही थी फिर भी काम तो करना ही था। सो जुट गए, काम में। ये क्या फिर बदलाव आया। इस बार वो भी प्रमोट होकर चले गए। बेचारे पत्रकार फिर रह गए, लेकिन यह क्या? इस बार बेचारेे पत्रकार के चेहरे पर मुस्कान थी। लगता है पहले वाले के जाने की थी। अब नए सम्पादक से फिर आस जग गई, लेकिन देखना यह है कि इनका नंबर कब आएगा। कहीं बेचारे पत्रकार फिर न रह जाएं।
आपको सलाह तेल लगाओ, काम चलाओ।।

आपका शुभेच्छु

-ज्ञानेन्द्र

2 comments:

  1. यह तो खूब रही...
    वैसे होता ये ही है

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  2. Aapki vyatha to sabki si lagti hai...

    prabhu aapki ardas poori kare...

    lambi hai gum ki shaam magar shaam hi to hai...

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