कई लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आशियाने नहीं हैं। है तो सिर्फ किराये का मकान.....................
Tuesday, September 28, 2010
अहसास
एक रात
चांदनी छाई
ठंडी हवा सरसराई
ख्वाब मेरे
सजने लगे
होंठ मेरे खिलने लगे
सपनों में मैं खोने लगा
कुछ मुझे होने लगा
बदल रहा बार-बार करवट
पड़ रही थी चादर में सिलवट
मैं मदहोश होने लगा
जिया मेरा खोने लगा
ये कैसा अहसास होने लगा।
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