Sunday, February 13, 2011

दिल का मदनोत्सव वसंत

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - वसंत आता नहीं लाया जाता है। कोई भी इसे अपने उपर ला सकता है। इन पंक्तियों को शहर के युवा दिलों ने बखूबी साबित किया। जवानी के मदनोत्सव में सराबोर युवा दिल सड़क पर आते-जाते पीले फूल ’पीले वस्त्रों में लड़कियां’ देख रहे थे। तभी उन्हें वसंत को मनाने और ओढ़ने का ख्याल आया। क्या वसंत समुद्र जैसी विशाल लहरों के हिलोरों को ही कहते हैं। यदि हां तो मान लिया जाए कि यही युवा दिल का मदनोत्सव वसंत है। सावन के जिस अंधे को हर जगह हरा-हरा दिखता है वही युवा मन हर जगह पीला-पीला देखने के लिए क्यों आतुर नजर आता है? सेक्स या कामुकता के लिए हमेशा से ही चटकीला लाल रंग प्रभाव में रहा है। चाहे वह कंडोम में स्ट्ावेरी का प्रचार हो या फिर सुहाग के जोड़े में सजी दुल्हन। लड़की लाल दुपट्टे वाली गाना हो या लाल छड़ी मैदान खड़ी का सदाबहार गीत। लाल रंग ने ही हर जगह बाजी मारी है पर यह मदनोत्सव का कैसा त्योहार है जो पीला होने के बावजूद लाल पर भारी पड़ रहा है। युवा मन की एक और कैटेगरी है जो बीयर के गिलास में पीला रंग ढूंढता है और उसी को ओढ़ता हुआ मदहोश हो मदनोत्सव में मस्त रहता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी की लाइनों में सचमुच बहुत ताकत है। वसंत आता नहीं लाया जाता है।

-ज्ञानेन्द्र

1 comment:

  1. aap ke shabd man ko prabhavit karte hain,
    saadhuvaad

    aaj do naye par acche blogs se parichay hua ek aap aur ek
    http://jan-sunwai.blogspot.com/2011/08/blog-post_31.html
    unko aap tak aur aapko untak pahunchan ka dussahas kar rahi hun

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